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एक प्यार करने वाले से पूछा गया कि प्यार क्या होता है? कैसा लगता है? तो उसका जवाब था कि प्यार गेहूँ की तरह बंद है, अगर पीस दें तो उजला हो जाएगा, पानी के साथ गूँथ लो तो लचीला हो जाएगा... बस यह लचीलापन ही प्यार है, लचीलापन पूरी तरह समर्पण से आता है, जहा ँ न कोई सीमा है न शर्त। प्यार एक एहसास है, भावना है। प्रेम परंपराएँ तोड़ता है। प्यार त्याग व समरसता का नाम है।
प्रेम की अभिव्यक्ति सबसे पहले आँखों से होती है और फिर होंठ हाले दिल बयाँ करते हैं। और सबसे मज़ेदार बात यह होती है कि आपको प्यार कब, कैसे और कहाँ हो जाएगा आप खुद भी नहीं जान पाते। वो पहली नजर में भी हो सकता है और हो सकता है कि कई मुलाकातें भी आपके दिल में किसी के प्रति प्यार न जगा सकें।
प्रेम तीन स्तरों में प्रेमी के जीवन में आता है। चाहत, वासना और आसक्ति के रूप में। इन तीनों को पा लेना प्रेम को पूरी तरह से पा लेना है। इसके अलावा प्रेम से जुड़ी कुछ और बातें भी हैं -
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प्रेम का दार्शनिक पक्ष- प्रेम पनपता है तो अहंकार टूटता है। अहंकार टूटने से सत्य का जन्म होता है। यह स्थिति तो बहुत ऊपर की है, यदि हम प्रेम में श्रद्धा मिला लें तो प्रेम भक्ति बन जाता है, जो लोक-परलोक दोनों के लिए ही कल्याणकारी है। इसलिए गृहस्थ आश्रम श्रेष्ठ है, क्योंकि हमारे पास भक्ति का कवच है। जहाँ तक मीरा, सूफी संतों की बात है, उनका प्रेम अमृत है।
साथ ही अन्य तमाम रिश्तों की तरह ही प्रेम का भी वास्तविक पहलू ये है कि इसमें भी संमजस्य बेहद जरूरी है। आप यदि बेतरतीबी से हारमोनियम के स्वर दबाएँ तो कर्कश शोर ही सुनाई देगा, वहीं यदि क्रमबद्ध दबाएँ तो मधुर संगीत गूँजेगा। यही समरसता प्यार है, जिसके लिए सामंजस्य बेहद जरूरी है।
प्रेम का पौराणिक पक्ष- प्रेम के पौराणिक पक्ष को लेकर पहला सवाल यही दिमाग में आता है कि प्रेम किस धरातल पर उपजा-वासना या फिर चाहत....? माना प्रेम में काम का महत्वपूर्ण स्थान है, लेकिन महज वासना के दम पर उपजे प्रेम का अंत तलाक ही होता है। जबकि चाहत के रंगों में रंगा प्यार ज़िंदगीभर बहार बन दिलों में खिलता है, जिसकी महक उम्रभर आपके साथ होती है।
प्रेम का प्रतीक गुलाब- सुगंध और सौंदर्य का अनुपम समन्वय गुलाब सदियों से प्रेमी-प्रेमिकाओं के आकर्षण का केंद्र रहा है। गुलाब का जन्म स्थान कहाँ है यह आज भी विवाद का विषय बना हुआ है। इस पर कथाएँ तो कई हैं, लेकिन एक कथा के अनुसार जहा ँ- जहा ँ पैगम्बर के पसीने की बूँदें गिरीं, वहाँ-वहाँ गुलाब के पौधे उग आए।
लाल गुलाब की कली मासूमियत का प्रतीक है और यह संदेश देती है तुम सुंदर और प्यारी हो। लाल गुलाब किसी को भेंट किया जाए तो यह संदेश है कि मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। सफेद गुलाब गोपनीयता रखते हुए कहता है कि तुम्हारा सौंदर्य नैसर्गिक है। जहाँ पीला गुलाब प्रसन्नता व्यक्त करता है, वहीं गुलाबी रंग प्रसन्नता और कृतज्ञता व्यक्त करता है। गुलाब यदि दोस्ती का प्रतीक है तो गुलाब की पत्तियाँ आशा की प्रतीक हैं।
- अशोक
यू दूर रह कर दूरियों को बढ़ाया नहीं करते.. अपने दिवानो को सताया नहीं करते,
हर वक़्त बस.. जिसे तुम्हारा ख़याल हो,उसे अपनी आवाज़ के लिए तड़पाया नहीं करते..
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एक प्यार करने वाले से पूछा गया कि प्यार क्या होता है? कैसा लगता है? तो उसका जवाब था कि प्यार गेहूँ की तरह बंद है, अगर पीस दें तो उजला हो जाएगा, पानी के साथ गूँथ लो तो लचीला हो जाएगा... बस यह लचीलापन ही प्यार है, लचीलापन पूरी तरह समर्पण से आता है, जहा ँ न कोई सीमा है न शर्त। प्यार एक एहसास है, भावना है। प्रेम परंपराएँ तोड़ता है। प्यार त्याग व समरसता का नाम है।
प्रेम की अभिव्यक्ति सबसे पहले आँखों से होती है और फिर होंठ हाले दिल बयाँ करते हैं। और सबसे मज़ेदार बात यह होती है कि आपको प्यार कब, कैसे और कहाँ हो जाएगा आप खुद भी नहीं जान पाते। वो पहली नजर में भी हो सकता है और हो सकता है कि कई मुलाकातें भी आपके दिल में किसी के प्रति प्यार न जगा सकें।
प्रेम तीन स्तरों में प्रेमी के जीवन में आता है। चाहत, वासना और आसक्ति के रूप में। इन तीनों को पा लेना प्रेम को पूरी तरह से पा लेना है। इसके अलावा प्रेम से जुड़ी कुछ और बातें भी हैं -
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प्रेम का दार्शनिक पक्ष- प्रेम पनपता है तो अहंकार टूटता है। अहंकार टूटने से सत्य का जन्म होता है। यह स्थिति तो बहुत ऊपर की है, यदि हम प्रेम में श्रद्धा मिला लें तो प्रेम भक्ति बन जाता है, जो लोक-परलोक दोनों के लिए ही कल्याणकारी है। इसलिए गृहस्थ आश्रम श्रेष्ठ है, क्योंकि हमारे पास भक्ति का कवच है। जहाँ तक मीरा, सूफी संतों की बात है, उनका प्रेम अमृत है।
साथ ही अन्य तमाम रिश्तों की तरह ही प्रेम का भी वास्तविक पहलू ये है कि इसमें भी संमजस्य बेहद जरूरी है। आप यदि बेतरतीबी से हारमोनियम के स्वर दबाएँ तो कर्कश शोर ही सुनाई देगा, वहीं यदि क्रमबद्ध दबाएँ तो मधुर संगीत गूँजेगा। यही समरसता प्यार है, जिसके लिए सामंजस्य बेहद जरूरी है।
प्रेम का पौराणिक पक्ष- प्रेम के पौराणिक पक्ष को लेकर पहला सवाल यही दिमाग में आता है कि प्रेम किस धरातल पर उपजा-वासना या फिर चाहत....? माना प्रेम में काम का महत्वपूर्ण स्थान है, लेकिन महज वासना के दम पर उपजे प्रेम का अंत तलाक ही होता है। जबकि चाहत के रंगों में रंगा प्यार ज़िंदगीभर बहार बन दिलों में खिलता है, जिसकी महक उम्रभर आपके साथ होती है।
प्रेम का प्रतीक गुलाब- सुगंध और सौंदर्य का अनुपम समन्वय गुलाब सदियों से प्रेमी-प्रेमिकाओं के आकर्षण का केंद्र रहा है। गुलाब का जन्म स्थान कहाँ है यह आज भी विवाद का विषय बना हुआ है। इस पर कथाएँ तो कई हैं, लेकिन एक कथा के अनुसार जहा ँ- जहा ँ पैगम्बर के पसीने की बूँदें गिरीं, वहाँ-वहाँ गुलाब के पौधे उग आए।
लाल गुलाब की कली मासूमियत का प्रतीक है और यह संदेश देती है तुम सुंदर और प्यारी हो। लाल गुलाब किसी को भेंट किया जाए तो यह संदेश है कि मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। सफेद गुलाब गोपनीयता रखते हुए कहता है कि तुम्हारा सौंदर्य नैसर्गिक है। जहाँ पीला गुलाब प्रसन्नता व्यक्त करता है, वहीं गुलाबी रंग प्रसन्नता और कृतज्ञता व्यक्त करता है। गुलाब यदि दोस्ती का प्रतीक है तो गुलाब की पत्तियाँ आशा की प्रतीक हैं।
- अशोक
यू दूर रह कर दूरियों को बढ़ाया नहीं करते.. अपने दिवानो को सताया नहीं करते,
हर वक़्त बस.. जिसे तुम्हारा ख़याल हो,उसे अपनी आवाज़ के लिए तड़पाया नहीं करते..
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